मंगलवार, 10 नवंबर 2009

राज की गुंडा गर्दी नही रोकी गई तो परिणाम भारी होंगे

महाराष्ट्र विधानसभा में सोमवार को जो कुछ हुआ, उससे लोकतंत्र शर्मसार हो गया। एक विधायक ने हिंदी में शपथ लेना शुरू ही किया था कि तथाकथित मराठी मर्यादा के पहरुए उस पर टूट पड़े। माइक छीन लिया और उन्हें थप्पड़ जड़ दिए। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के विधायकों की हरकत के प्रत्यक्ष शिकार बने समाजवादी पार्टी के विधायक अबू आजमी, पर वह थप्पड़ सीधा विधानसभा की मर्यादा के गाल पर लगा और छोड़ गया हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था पर एक प्रश्नचिह्न्।
प्रथम दृष्टया यह ‘महाराष्ट्र में रहना है तो मराठी बोलनी होगी’ आंदोलन का हिंसक रूप दिखता है। जिन्होंने अंग्रेजी में शपथ ली उनका कोई विरोध नहीं हुआ, तो क्या यह हिंदी-विरोध का मामला था? दिखता भले ऐसा हो, पर इसकी जड़ में लोकतंत्र की वे कुरीतियां हैं जिन्हें हमने लोकतंत्र के नाम पर ही पनपने का मौका दिया। घाव को नासूर बना दिया क्योंकि इलाज से कतराते रहे।
राज ठाकरे के गुर्गे जब रेलवे स्टेशनों पर बिहारी छात्रों की पिटाई कर रहे थे, तब सरकारें हाथ पर हाथ धरे बैठी रहीं। मनसे के गुंडे जब जबरदस्ती दुकानों के साइनबोर्ड तोड़ते रहे, तब कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस गठबंधन की सरकार चुप रही क्योंकि मनसे की मजबूती में उन्हें शिव सेना की कमजोरी दिखी।
राज के गुंडाराज में जब हिंदीभाषी टैक्सी वालों पर अत्याचार हुआ तब भी शरद पवार जैसे राष्ट्रीय स्तर के नेताओं तक ने मुंह नहीं खोला क्योंकि उनका राजनीतिक स्वार्थ राज की मजबूती में था। शिव सेना कमजोर हुई और राज मजबूत भी हुए। इस विधानसभा में उनके बारह विधायक हैं। फिर क्या था सबने उन्हें उभरती राजनीतिक शक्ति करार दे दिया, पर यह शक्ति शिव सेना से भी ज्यादा आक्रामक और विघटनकारी है।
ऐसी शक्तियों के दुष्परिणामों से इतिहास भरा पड़ा है, पर इतिहास से नहीं सीखने की भूल हमारी आदत में शामिल है। अकाली दल को पछाड़ने की जुगत में कांग्रेस ने पंजाब में भिंडरांवाले को खड़ा किया था, अकाली कमजोर हुए पर भिंडरांवाले इतने मजबूत हो गए थे कि उनके खत्म होने के बाद भी हजारों जानें गईं।
राज की मनसे खालिस्तानियों की तरह बंदूक से बातें नहीं करती, पर डंडों और थप्पड़ों से ही सही, बातें वही करती है। अपनी पहचान के नाम पर भारत के संविधान को चुनौती देने वाली बातें। सवाल अबू आजमी के गाल का नहीं है, संविधान की मर्यादा का है। वक्त आ गया है जब बाहुबल को राजनीतिक संवाद में स्थान देने से इनकार किया जाए

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