गुरुवार, 5 नवंबर 2009

निचली अदालतों को भी पारदर्शी बनाएं

निचली अदालतों को भी पारदर्शी बनाएं
.....विचार.........नव भारत टाईम्स ...NOV 05,२००९
हर कोईवाकिफ है किकुछ अपवादोंको छोड़कर सभीनिचलीअदालतों मेंपेशकार(हाजिरी कीपुकार लगानेवालेअर्दलियों) कोतारीख' कीपेशगीनिश्चित रूपसे देनी होती है। कभीचवन्नी-अठन्नी(25 पैसे-50 पैसे) सेशुरू हुईपेशकारसाहबों की यहमांग मुद्रास्फीतिके चढ़तेग्राफ को पकड़कर 20-50 रुपये तकजा पहुंची है।जो निचलीअदालतों मेंआते-जाते हैं,वे जानते हैंकि तारीखों कीइस वसूली काबंटवारा अदालत के पूरेस्टाफ के बीचहोता है। ऐसेमें, सवाल यहउठता है किन्याय की देवीके मंदिर मेंऔर जज साहब कीआंखों केसामने जब यह सबखुलेआम होताहै, तब कैसेमान लिया जाएकि वे खुद भीउस बंटवारेमें भागीदारनहीं होते होंगे?........................................................
बिल्कुल सही कहा ,की जनता को निचली अदालतों में ही ज्यादा वास्ता पढ़ता है ,
इस लिए निचली अदालतों के जजों की संपत्ति घोषणा को जरुरी बनाया जाना चाहिए ।
मेरा तो यह कहना है की इनके साथ साथ सभी वकीलों को ,तथा सभी चार्टेड एकाऊँटेंट को भी अपनी संपत्ति की घोषणा करना जरुरी किया जाना चाहिए ।क्योंकि ये भी जनता को बहुत ज्यादा लूट ते हैं। तथा बिचोलिये का काम भी करते है । करोडो की जायदाद बना लेते हैं । तथा टेक्स ना के बराबर देते है
अन्यथा उनको वकालत की अनुमति नहीं होनी चाहिए अदालतों में मुकदमों की भीढ़ इनकी वजह से ही इकट्ठी होती है । कहीं भी समझोता नहीं होने देते । काले कोट वालों के कारनामे भी काले हैं ।

> VIJAY ARORA DWARKA DELHI

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